अजय बग्गा
अब तक जो बजट पेश किए जाते थे, उनमें विकास की तरफ अग्रसर होने की तुलना में रेटिंग एजेंसी, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के दबाव में राजकोषीय घाटे और उधार को नियंत्रित रखने को ज्यादा अहमियत दी जाती थी। पहली बार बजट में काफी पारदर्शिता के साथ कहा गया है कि हमने कोविड महामारी की वजह से 9.5 फीसदी का राजकोषीय घाटा रखा है, हमारे पास आय केवल 23 लाख करोड़ थी, लेकिन हम 34 लाख करोड़ खर्च कर रहे हैं और आगे हम और खर्च करेंगे। अगले वर्ष भी 6.8 फीसदी का राजकोषीय घाटा रखेंगे और हम विकास को तवज्जो दे रहे हैं। अर्थव्यवस्था में जब हम पैसा डालते हैं, तो उसका प्रभाव अर्थव्यवस्था में कई गुना होता है। यदि आप सौ रुपये सड़क निर्माण पर खर्च करते हैं, तो अर्थव्यवस्था में 800 रुपये का असर दिखता है। सरकार ने कहा है कि हम साढ़े पांच लाख करोड़ रुपये सड़कें, पुल, रेलवे जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण पर खर्च करेंगे। यह एक बहुत बड़ी सकारात्मक पहल है, क्योंकि इससे जीडीपी पर छह से आठ गुना असर पड़ेगा। यह एक बड़ा वित्तीय प्रोत्साहन है। रिजर्व बैंक की तरफ से मौद्रिक प्रोत्साहन तो दिया ही जा रहा था, बजट के जरिये बाजार और अर्थव्यवस्था को और प्रोत्साहन दिया गया है।
दुनिया भर में वित्तीय प्रोत्साहन दिया जा रहा था। पिछले साल सरकार ने गरीबों के खाते में पैसे डाले और उन्हें अन्न दिया, लेकिन प्रोत्साहन के तौर पर कुछ खास नहीं किया गया था। बजट में सरकार ने कंजूसी नहीं दिखाई है, बल्कि विकास को तेजी देने के लिए खर्च करने पर जोर दिया है। इसके जरिये सरकार ने यह संदेश देना चाहा है कि हम उद्योग और अर्थव्यवस्था में तेजी के पक्षधर हैं और विकास लाएंगे। इसलिए शेयर बाजार ने भी इसका स्वागत किया। पहले बाजार को इस बात का डर था कि सरकार राजस्व कहां से जुटाएगी। सरकार ने टैक्स में कोई बढ़ोतरी नहीं की, जो स्वागत योग्य है। यह भी भय था कि वित्तीय स्थिति संभालने के लिए कोविड शेष थोपा जाएगा, या शेयर बाजार में टैक्स लगाया जाएगा। लेकिन मध्यवर्ग या उपभोक्ताओं पर बोझ डालने के बजाय सरकार ने कहा कि हम बाजार में जाकर पैसा उधार लेंगे। यह भी एक अच्छी बात है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में, खाद्य सामग्री में खर्चा बढ़ाने की भी बात की गई। बैंकिंग क्षेत्र में जो खराब कर्जों की समस्या है, उसके लिए घोषणा की गई कि एक संस्था बनेगी, जो इन बैंकों से खराब कर्जे ले लेगी और उसका समाधान निकालेगी। इससे बैंक की बैलेंस शीट से वे कर्ज हट जाएंगे और बैंक को फिर सकारात्मक चीजों पर ध्यान केंद्रित करने का मौका मिलेगा। फिर किफायती आवास, तरह-तरह के सुधारात्मक उपाय, टेक्सटाइल पार्क आदि की भी घोषणा की गई। इस बार मध्य वर्ग के लिए कोई खास राहत की घोषणा नहीं की गई है। आयकर अधिनियम में पारदर्शिता लाने और उसे आसान बनाने की बात जरूर की गई है। मसलन, 75 वर्ष के वरिष्ठ नागरिकों को रिटर्न नहीं भरना पड़ेगा, फेसलेस एसेसमेंट और अगर आयकर विभाग से पचास लाख रुपये से कम की रकम का विवाद चल रहा है, तो आयकर के मामले नहीं खोले जाएंगे।
लगता है कि इस बार के बजट को केवल किसी अकाउंटेंट ने तैयार नहीं किया है। इसमें सरकार की बदली हुई सोच दिख रही है कि जब दुनिया भर में नोट छापके अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने और बचाने की कोशिश हो रही है, तो हम क्यों नहीं। इससे रोजगार बढ़ेगा, उपभोग बढ़ेगा और समग्र रूप से अर्थव्यवस्था के विकास का माहौल बनेगा। बाजार ने इसलिए इसका जोर-शोर से स्वागत किया।
सौजन्य - अमर उजाला।
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