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Monday, August 9, 2021

खुदरा बाजार पर कब्जे की जंग (हिन्दुस्तान)

आलोक जोशी, वरिष्ठ पत्रकार 

खुदरा बाजार पर कब्जे की जंग

सुप्रीम कोर्ट ने एमेजॉन के पक्ष में फैसला सुनाया। अडानी, अंबानी को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका। सुप्रीम कोर्ट ने एमेजॉन की याचिका पर जो फैसला सुनाया, उसके शीर्षक कुछ ऐसे ही बन सकते हैं। बहरहाल, फ्यूचर ग्रुप के प्रोमोटर किशोर बियानी ने अपना पूरा रिटेल और कुछ होलसेल कारोबार रिलायंस रिटेल को बेचने का जो सौदा किया था, सुप्रीम कोर्ट ने उस पर रोक लगा दी है। 

यह मामला जितना दिख रहा है, उससे कहीं ज्यादा पेचीदा है। अदालत में लड़ाई जेफ बेजोस के एमेजॉन और फ्यूचर ग्रुप के प्रोमोटर किशोर बियानी के बीच ही चल रही थी और आज भी चल रही है। लेकिन दरअसल यह मुकाबला दुनिया के सबसे अमीर आदमी जेफ बेजोस और भारत के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी या उनकी कंपनियों के बीच है। और दांव पर है भारत का रिटेल या खुदरा बाजार। 

फॉरेस्टर रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में भारत का रिटेल कारोबार करीब 883 अरब डॉलर यानी करीब 65 लाख करोड़ रुपये का था। इसमें से भी सिर्फ किराना या ग्रोसरी का हिस्सा 608 अरब डॉलर या 45 लाख करोड़ रुपये के करीब था। इसी एजेंसी का अनुमान था कि 2024 तक यह कारोबार बढ़कर एक लाख तीस हजार करोड़ डॉलर या 97 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका होगा। यही वह बाजार है, जिस पर कब्जा जमाने की लड़ाई एमेजॉन व रिलायंस रिटेल के बीच चल रही है। वह वक्त गया, जब किशोर बियानी रिटेल किंग कहलाते थे। आज तो वह दो पाटों के बीच फंसे हुए हैं। जीते कोई भी, फ्यूचर ग्रुप की तो जान ही जानी है। किशोर बियानी के कारोबार की कहानी बहुत से लोगों के लिए सबक का काम भी कर सकती है कि कैसे एक जरा सी गलती आपको बहुत बड़ी मुसीबत में फंसा सकती है। उन्होंने एक सौदा किया था, तब शायद यह सोचा था कि भविष्य में यह मास्टरस्ट्रोक साबित होगा, लेकिन अब वही गले की फांस बन चुका है। 



किस्सा थोड़ा लंबा है, लेकिन जरूरी है। किशोर बियानी रिटेल किंग कहलाते थे। ज्यादातर लोग उन्हें पैंटलून स्टोर्स और बिग बाजार के नाम से ही पहचानते हैं। जब से रिटेल में विदेशी निवेश की चर्चा शुरू हुई, तभी से यह सवाल पूछा जा रहा था कि दुनिया के बड़े दिग्गज रिटेलर जब भारत आएंगे, तब उनमें से कौन किशोर बियानी को अपना भागीदार बनाने में कामयाब होगा। रिटेल कारोबार पर भारत की बड़ी कंपनियों की निगाहें भी टिकी थीं। रिलायंस रिटेल धीरे-धीरे चला, लेकिन अब वह देश का सबसे बड़ा रिटेलर बन चुका था। 

इस बीच फ्यूचर ग्रुप कुछ ऐसी जुगत में लगा रहा कि किसी तरह कंपनी में इतना पैसा लाने का इंतजाम हो जाए कि वह बाजार में कमजोर न पड़े। रिटेल सेक्टर में विदेशी निवेश के नियम उसके रास्ते में बाधा खड़ी कर रहे थे। एमेजॉन जैसी कंपनी भी भारत में पैर फैलाना चाहती थी, लेकिन ऑनलाइन कारोबार में लगी कंपनी के लिए इसमें घुसना और मुश्किल था। फिर 2019 में फ्यूचर ग्रुप से एक बयान आया कि उनकी एक कंपनी फ्यूचर कूपन्स लिमिटेड ने एमेजॉन के साथ करार किया है और एमेजॉन ने इस कंपनी में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी है। दोनों कंपनियों ने यही कहा था कि यह तो लॉयल्टी पॉइंट और गिफ्ट वाउचर जैसा काम करने वाली कंपनी है और इसमें निवेश का ग्रुप के रिटेल कारोबार से कोई रिश्ता नहीं है। 

यह अंदाजा नहीं था कि यह छोटा सा सौदा ही आगे चलकर बहुत बड़ा बवाल खड़ा करने वाला है। शायद किशोर बियानी को या फ्यूचर ग्रुप के लोगों को अंदाजा रहा हो, मगर तब भी वह शायद यह नहीं सोच रहे थे कि एक दिन उन्हें अपना कारोबार रिलायंस को बेचना पड़ेगा। लॉकडाउन शुरू होने के पहले ही कंपनी भारी परेशानी में थी, लेकिन लॉकडाउन बहुत महंगा पड़ा। पिछले साल अगस्त में फ्यूचर ग्रुप ने अपना रिटेल कारोबार रिलायंस को बेचने का समझौता किया। 

यह समझौता होते ही एमेजॉन के साथ उसके पुराने करार का भूत जाग उठा। एमेजॉन ने अब सामने आकर बताया कि जिस फ्यूचर कूपन्स में उसने 49 प्रतिशत हिस्सा खरीदा था, वह फ्यूचर रिटेल में करीब 10 प्रतिशत हिस्सेदारी की मालिक है, इस नाते एमेजॉन भी उस कंपनी में करीब पांच प्रतिशत का हिस्सेदार है। एमेजॉन ने यह भी कहा कि 2019 के करार में एक रिस्ट्रिक्टेड पर्सन्स यानी ऐसे लोगों और कंपनियों की लिस्ट थी, जिनके साथ फ्यूचर ग्रुप को सौदा नहीं करना था। रिलायंस रिटेल इस लिस्ट में शामिल था। 

यह झगड़ा सिंगापुर की अंतरराष्ट्रीय पंचाट में पहुंचा और उसने सौदे पर एक तरह से स्टे दे दिया। एमेजॉन जब यह फैसला लागू करवाने की मांग के साथ दिल्ली हाईकोर्ट गया, तो वहां से पहला आदेश उसके ही पक्ष में आया। लेकिन इसके बाद हाइकोर्ट की ही बड़ी बेंच ने इस फैसले को पलटकर सौदे पर रोक लगाने का आदेश खारिज कर दिया। तब मामला सुप्रीम कोर्ट गया, जहां से पिछले गुरुवार को फैसला आया है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले की यह बात समझनी जरूरी है कि कोर्ट ने सिर्फ यह कहा है कि सिंगापुर की पंचाट अगर कोई फैसला सुनाती है, तो वह भारत में भी लागू होगा, इसीलिए फ्यूचर व रिलायंस का सौदा फिलहाल आगे नहीं बढ़ सकता। 

इस बीच भारतीय प्रतिस्पद्र्धा आयोग, यानी सीसीआई ने एमेजॉन को नोटिस दिया है कि वर्ष 2019 में फ्यूचर ग्रुप के साथ समझौता करते वक्त उसने कुछ जरूरी चीजों को परदे में रखा था। तर्क यह है कि तब दोनों कंपनियों ने कहा था कि इस समझौते का फ्यूचर ग्रुप के रिटेल कारोबार से कोई रिश्ता नहीं है, पर अब एमेजॉन इसी समझौते के सहारे रिटेल कारोबार का सौदा रुकवाना चाहता है। सीसीआई के पास यह अख्तियार है कि अगर वह चाहे, तो पुरानी तारीख में भी वह फ्यूचर और एमेजॉन के सौदे को रद्द कर सकता है। 

यह पूरा मामला देश के दूसरे व्यापारियों के लिए सबक है। चादर से बाहर पैर फैलाना तो कारोबार में जरूरी है, लेकिन यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि इस चक्कर में कहीं चादर न फट जाए। कर्ज लेने में भी सावधान रहें और बड़ी कंपनियों से रिश्ते जोड़ने में तो और भी सावधान रहें।  

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

सौजन्य - हिन्दुस्तान।

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