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Friday, August 7, 2020

ज्ञान आधारित विकास की ओर


दीपक कुमार श्रीवास्तव, प्रोफेसर, आईआईएम तिरुचिरापल्ली
                                                           
आने वाले समय में किसी भी व्यक्ति का सिर्फ एक योग्यता से काम नहीं चलेगा। एक से ज्यादा कौशल रखने वाले युवाओं को जीविका की दौड़ में आगे निकलने में सुविधा होगी। एक दौर था, जब एक योग्यता से भी काम चल जाता था, एक ही ढंग के काम या रोजगार में लगकर लोग अपनी जिंदगी ठीक-ठाक गुजार लेते थे। आज कॉरपोरेट की दुनिया में एक योग्यता वाले को ‘आई शेप्ड’(अंग्रेजी अक्षर आई) कहा जाता है, जबकि एकाधिक योग्यता वालों को ‘टी-सेप्ड’(अंग्रेजी अक्षर टी)। जाहिर है, कॉरपोरेट की दुनिया में ‘टी-सेप्ड’ लोगों को तरजीह दी जा रही है। भारत की नई शिक्षा नीति भी इस कोशिश में है कि देश में ‘टी-सेप्ड’ लोगों की तादाद बढे़। 
भारत की नई शिक्षा नीति से 34 वर्ष बाद ऐसे कई सुधारों की उम्मीद बंधी है। इस शिक्षा नीति में देश की शिक्षा-व्यवस्था की तस्वीर बदलने के कई नए उपाय किए गए हैं, जैसे- तमाम उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए अब एक नियामक होगा। इससे उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को पहले से ज्यादा मजबूती मिलेगी। नई नीति में डिजिटल लर्निंग को तरजीह दी गई है, शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण किया जाएगा, बहु-विषयक शैक्षणिक नजरिए पर खास ध्यान दिया जाएगा, संस्थागत स्वायत्तता बढ़ाई जाएगी, इनोवेशन यानी नवाचार व रचनात्मकता को प्रोत्साहित किया जाएगा, शिक्षा में अनुभव पर आधारित गंभीर चिंतन को प्रेरित किया जाएगा, विशिष्ट शोध व अनुसंधान के लिए धनराशि जारी की जाएगी आदि।
नई शिक्षा नीति नालंदा, तक्षशिला, वल्लभी और विक्रमशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों के गौरव को भी याद करती है, जिनमें अनुसंधान और शिक्षण का जीवंत माहौल हुआ करता था। ऐसी परंपरा को फिर से अपनाने की दरकार है। आज विद्यार्थियों में ‘क्रॉस-स्किल’ यानी हर तरह के कौशल को विकसित करने के लिए बहु-विषयक दृष्टिकोण जरूरी हो चला है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अब उद्योग जगत में उन नौजवानों की ज्यादा मांग है, जो तमाम तरह की विधाओं में दक्ष हैं। अब हम ‘इंडस्ट्री 4.0’ (ऑटोमेशन प्रौद्योगिकी पर आधारित चौथी औद्योगिक क्रांति) की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं, जो रोजगार के लिए अनिवार्य योग्यता में कई महत्वपूर्ण बदलाव लाएगा। भविष्य के कल-कारखाने ऑटोमेशन यानी स्वचालन पर काम करेंगे और रोबोटिक्स पर ज्यादा निर्भर होंगे। इसमें जाहिर तौर पर क्रॉस-स्किल वाले कर्मियों को ज्यादा तवज्जो मिलेगी। 
नई नीति एक ऐसे दूरदर्शी नजरिए की वकालत करती है, जिसमें शिक्षा कुशल कार्य-बल के साथ-साथ एक जागरूक और शिक्षित समाज के विकास का सपना पूरा कर सकेगी। इससे हम कई सामाजिक समस्याओं का उचित समाधान कर सकेंगे। यह वाकई बहुत अच्छा होगा, जब सभी विश्वविद्यालय, कॉलेज और अन्य शिक्षण संस्थान अपने ‘विजन डॉक्यूमेंट’ को नई शिक्षा नीति के अनुसार तैयार करेंगे।
शिक्षा आर्थिक विकास के बुनियादी कारकों में एक मानी जाती है। कोई भी देश मानव पूंजी और ज्ञान की नींव मजबूत किए बिना टिकाऊ आर्थिक विकास के रास्ते पर नहीं बढ़ सकता। यह शिक्षा ही है, जिसने कई कृषि-प्रधान या अविकसित अर्थव्यवस्थाओं को दुनिया की सबसे अधिक प्रतिस्पद्र्धी व औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं में शुमार किया है। दक्षिण कोरिया व फिनलैंड का उदाहरण हमारे सामने है, जहां के नीति-नियंताओं ने शिक्षा की गुणवत्ता पर खासा ध्यान दिया और जल्दी ही अपने देश को उस मुकाम पर ले आए, जहां दूसरे राष्ट्र उनकी तरक्की पर रश्क कर सकते हैं। 
नई शिक्षा नीति छात्र-छात्राओं में सामाजिक व नैतिक मूल्यों के विकास पर भी जोर देती है। इस तरह के गुण विद्यार्थियों के समग्र विकास के लिए बहुत जरूरी हैं। मौजूदा परीक्षा व कोचिंग संस्कृति को बदलने पर भी नई नीति बल देती है और इसकी जगह हकीकत में समस्याओं से रूबरू होकर समझ विकसित करने और नए अवसर खोजने के लिए अधिक लचीली व्यवस्था अपनाने की वकालत करती है। इससे छात्र-छात्राओं का सर्वांगीण विकास हो सकेगा। इसी कारण अब परीक्षा पैटर्न को इस रूप में विकसित किया जाएगा कि परीक्षार्थियों की रटने की क्षमता की बजाय उनकी बुनियादी क्षमताओं का मूल्यांकन हो सके। नई नीति पठन-पाठन में भी लचीलेपन को बढ़ावा देने की बात कहती है, जिसमें छात्र-छात्राओं के पास अध्ययन के लिए विषयों के बेहतर विकल्प होंगे।
यह नीति मौजूदा शिक्षा-व्यवस्था की महत्वपूर्ण समस्याओं की भी पड़ताल करती है। आज हमारे सामने तमाम तरह की दिक्कतें हैं। जैसे, हमारा शिक्षा-तंत्र कई हिस्सों में बंटा हुआ है, सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित इलाकों में शिक्षा की पहुंच सीमित है, शिक्षकों की कमी है, संस्थागत स्वायत्तता सीमित है, और तमाम विषयों में अनुसंधान के मद मेंफंडिंग की कमी है। नई नीति में शोधकर्ताओं के लिए प्रतिस्पद्र्धी व योग्यता-आधारित अनुसंधान के लिए फंड की व्यवस्था करते हुए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की बात कही गई है। इससे शोध की संस्कृति को बढ़ावा मिल सकेगा।
पिछले सात दशकों में देश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रभावशाली तरक्की हुई है। आज केंद्रीय विश्वविद्यालय, राज्य विश्वविद्यालय, निजी विश्वविद्यालय, डीम्ड विश्वविद्यालय जैसे तमाम उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या कई गुना बढ़ गई है। इन वर्षों में संबद्ध कॉलेज भी कई गुना ज्यादा खोले गए हैं। फिर भी, सच यही है कि उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या में वृद्धि के मुताबिक शिक्षा की गुणवत्ता में विकास नहीं हुआ है। गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
नई शिक्षा नीति से प्रबंधन शिक्षा को भी बल मिलने की उम्मीद है। छात्र जब पहले की तुलना में ज्यादा विविध विषयों में पारंगत होकर प्रबंधन की पढ़ाई करने आएंगे, तो खुद शिक्षा संस्थानों व देश को बहुत लाभ होगा। उम्मीद है, नई नीति से भारतीय शिक्षा-व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव आ सकेगा और हमारे संस्थान दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में शुमार होंगे। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सौजन्य - हिन्दुस्तान।
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