आदिति फडणीस
तमिलनाडु पिछले कई दशकों से 'साम्राज्यवादी/शाही राजनीति' का गवाह रहा है। एम जी रामचंद्रन और एम करुणानिधि ने राज्य में पिछड़े वर्गों की जीवन धारा तय की। हालांकि वे ऐसे राजनीतिज्ञ थे जिन तक आम लोगों की पहुंच नहीं थी। जयललिता के मामले में तो यह बात और साफ दिखी। इन सभी नेताओं का अपने पार्टी तंत्रों पर पूर्ण नियंत्रण था और उन्होंने संगठनात्मक ढांचा कुछ कुछ इस तरह तैयार किया था, जिससे उन्हें अपना रसूख आजमाने में कभी दिक्कत नहीं आई। जब राज्य की बागडोर उनके हाथ में होती थी तो अफसरशाही उनके लिए एक विश्वसनीय सहयोगी की तरह काम करती थी।
हालांकि अब साम्राज्यवादी राजनीति बदल रही है। राज्य के मौजूदा उप-मुख्यमंत्री ओ पनीरसेलवम कृषक एवं महाजनों के प्रसिद्ध तेनी परिवार से आते हैं। अपने प्रभाव क्षेत्र पेरियाकुल में वह एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर जाने जाते हैं जिनसे आप कभी भी मदद मिलने की उम्मीद कर सकते हैं। राज्य के मुख्यमंत्री ई पलनिस्वामी वी के शशिकला के सहयोग से आगे बढ़े हैं, हालांकि उन्हें उनकी ताकतपश्चिम तमिलनाडु के सेलम में उनके चुनाव क्षेत्र इडापड्डी से मिलती है। पश्चिम तमिलनाडु में उन्हें जाति का लगभग पूरा समर्थन प्राप्त है।
इन दोनों नेताओं तक पहुंचना अब थोड़ा मुश्किल जरूर हो गया है, लेकिन हालत पहले की तरह नहीं हुई है। जयललिता को नजदीक से जानने वाले लोग कहते हैं कि उनका चुनाव प्रचार अभियान पहले से तय एक फॉर्मूले पर हुआ करता था। जयललिता निश्चित स्थान पर निर्धारित समय में बैठक के लिए अपनी एसयूवी से पहुंचती थीं। उसके बाद वह मंच पर पहुंच कर उम्मीदवार का लोगों से परिचय कराने के बाद 10 मिनट भाषण देती थीं और निकल जाती थीं। जनता दरबार या लोगों के साथ सीधे संवाद आदि की कोई प्रथा नहीं थी।
इन बातों के परिप्रेक्ष्य में राहुल गांधी की हाल में हुई तमिलनाडु यात्रा वहां के लोगों के लिए एक बड़ा बदलाव था। वहां लोगों को यह अपेक्षा नहीं होती कि स्थानीय नेता आकर उनसे बात करेंगे या उनके साथ समय व्यतीत करेंगे। कांग्रेस नेता की यात्रा कुछ मायने में अलग थी। इससे पहले दिल्ली से किसी नेता ने चुनाव में आकर लोगों से उनका समर्थन नहीं मांगा था और जल्लीकट्टू देखने के साथ भीड़ में खड़े होने, बच्चों को गोद में लेने और संवाददाता सम्मेलन में प्रश्नों के उत्तर देने की पहल नहीं की थी। कांग्रेस इस वक्त बुरे दौर से गुजर रही है, लेकिन राज्य में पार्टी का
संगठन अपनी साख और एक औसत लेकिन सम्मानजनक प्रदर्शन करने में सफल रहा है। इसका यह कतई मतलब नहीं है कि राज्य में कांग्रेस के सितारे गर्दिश से बाहर आ जाएंगे। हां, तमिलनाडु में राहुल गांधी एक जाना-माना चेहरा बन चुके हैं और लोग उन्हें पसंद भी करते हैं।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उपस्थिति राज्य में कांग्रेस से अधिक दिखती है क्योंकि पहले की तुलना में पार्टी को यहां अधिक धन मिल रहा है। हालांकि यह जरूरी नहीं कि लोग भाजपा को पसंद कर रहे हैं। इसका कारण 'हिंदी, हिंदू और हिंदुस्तान है', जो तमिलनाडु में लोगों के दिल को नहीं छू पाता है। देश के दूसरे हिस्से की तरह ही तमिलनाडु में भी लोगों ने स्वयं को धार्मिक पहचान के साथ जोडऩा शुरू कर दिया है, लेकिन भाषा अब भी यहां एक संवेदनशील मुद्दा है। अन्नाद्रमुक (पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया है) और द्रमुक दोनों में से कोई यह बात भूलने के लिए तैयार नहीं है कि गृह मंत्री अमित शाह ने भारत की पहचान हिंदी भाषा से कराने का आह्वान किया है। शाह ने 2019 में कहा था कि भारत में विविध भाषाएं बोली जाती हैं और हरेक भाषा का अपना महत्त्व है, लेकिन पूरे देश की एक भाषा जरूर होनी चाहिए जो वैश्विक स्तर पर भारत की पहचान बनें। उन्होंने कहा था कि अगर कोई एक भाषा देश को जोड़ कर रख सकती है तो वह हिंदी है। इस बयान के बाद तमिलनाडु जो रोष दिखा वह किसी से छुपा नहीं है।
दूसरे राज्यों की तरह तमिलनाडु में भी भाजपा ने 'खुले द्वार' की नीति अपनाई है। कानून से सुरक्षा चाहने वाले या अपने राजनीतिक करियर में आगे बढऩे की महत्त्वाकांक्षा रखने वाले कई लोग भाजपा में शाामिल हुए हैं। हालांकि भाजपा में शामिल होने के बाद ऐसे नेताओं के बारे में काफी कम सुना जाता है। उदाहरण के लिए द्रमुक और फिर कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आईं अभिनेत्री खुशबू अपने पहले संवाददाता सम्मेलन के बाद नदारद दिख रही हैं।
तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के खिलाफ चल रहे सत्ता विरोधी रुझान को नकारा नहीं जा सकता है। दूसरी तरफ लोग द्रमुक के सत्ता में आने की संभावना से भी बहुत खुश नहीं लग रहे हैं। उन्हें द्रमुक के आने के बाद भ्रष्टाचार बढऩे, चुनाव के बाद बदला लेने की होड़ शुरू होने और तुष्टीकरण नीति आदि का डर सता रहा है। जनवरी में चेन्नई में आयोजित द्रमुक की रैली में मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) एक सम्मानीय अतिथि थे यह बात कोई भूला नहीं है।
राज्य की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि अन्नाद्रमुक में शशिकला और शशिकला विरोधी गुटों में टकराव पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाएगी। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि द्रमुक गठबंधन का आकार बढऩे से सहयोगी सीटों की मांग करेंगे जिससे स्वयं द्रमुक के लोगों के टिकट कट सकते हैं। उनके अनुसार यह बात द्रमुक के हक में नहीं होगी। रजनीकांत के चुनाव मैदान से बाहर रहने से द्रमुक को लाभ पहुंचेगा, क्योंकि अगर वह चुनाव लड़ते तो द्रमुक के जनाधार में सबसे अधिक सेंध लगती। एक बात तो साफ है कि राज्य में चुनाव नजदीक आने से नेताओं के आने-जाने का तांता लगा रहेगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे पर सभी की नजरें होंगी, लेकिन राहुल गांधी को लोगों के जेहन से निकालना जरूरी होगा। तमिलनाडु एकमात्र ऐसा राज्य है जहां राहुल ने अपनी धाक जमाई है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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