वेदा वैद्यनाथन
कोविड-19 महामारी से वैश्विक समुदायों, अर्थव्यवस्थाओं और प्रणालियों को भारी क्षति हुई है, लेकिन भारत पर इसका विशेष रूप से गंभीर प्रभाव पड़ा है। महामारी की प्रकृति और तबाही ने देशों को द्विपक्षीय एवं आत्मनिरीक्षणपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने के लिए बाध्य किया है। वैश्विक व्यवस्था के पारस्परिक संबंधों को देखते हुए यह परखना महत्वपूर्ण है कि स्वास्थ्य लाभ के लिए खासकर अफ्रीकी देशों के साथ भागीदारी कैसे की जा सकती है। हालांकि अफ्रीका वायरस की चपेट में आने वाले अंतिम क्षेत्रों में से था, और 35,000 से ज्यादा मौतों के बावजूद एशिया की तुलना में यहां कम मामले दर्ज किए गए, यहां तक कि यूरोप की तुलना में भी वायरस का प्रसार वहां कम हुआ।
लेकिन आर्थिक मोर्चे पर यूरोपीय संघ, अमेरिका, चीन और अन्य बाजारों से घटती मांग के चलते आपूर्ति और मांग को झटका लगने के साथ अफ्रीकी देशों के बीच आपसी व्यापार कम होने से यह काफी प्रभावित हुआ। यह विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है कि उप-सहारा अफ्रीका की प्रति व्यक्ति जीडीपी इस साल -5.4 प्रतिशत कम हो सकती है, जो 4.9 करोड़ अफ्रीकियों को गरीबी में धकेलने के साथ पिछले एक दशक की प्रगति को पीछे ले जा सकती है। इसके अलावा पूरे अफ्रीका से तीन करोड़ नौकरियां जा सकती हैं, जबकि नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका और अंगोला जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की वास्तविक जीडीपी के 2023-24 से पहले पटरी पर लौटने की संभावना नहीं है। महामारी ने इस क्षेत्र में सामाजिक कल्याण योजनाओं और स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की अपेक्षाकृत कमजोर स्थिति को भी उजागर किया है, कई देशों में तो दस लाख मरीजों पर मात्र एक अस्पताल, एक डॉक्टर और दस हजार मरीजों पर एक बेड मौजूद है।
इसके बावजूद अफ्रीकी नेताओं, अफ्रीकी संघ और अफ्रीका के रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र के बीच सहयोग ने परीक्षण क्षमता में वृद्धि की, संसाधन जुटाए और वायरस का प्रसार रोकने के लिए उपाय किए। हालांकि अफ्रीकी एजेंसियों के पास सामूहिक रूप से संकट से निपटने का केंद्र है, लेकिन अन्य बहुपक्षीय एजेंसियों, संस्थानों एवं खिलाड़ियों ने उनके प्रयासों को मजबूती दी। यहीं पर भारत-अफ्रीकी संबंधों ने हाल के दिनों में गति पकड़ी। नियमित उच्च स्तरीय यात्रा, बढ़ते राजनयिक संबंध, विभिन्न क्षेत्रों में विविध जुड़ाव और जीवंत प्रवासी के कारण द्विपक्षीय संबंध इस अभूतपूर्व संकट के दौरान आकर्षण पैदा कर सकते हैं।
सहयोग की प्राथमिकता का क्षेत्र कोविड-19 राहत और न्यायसंगत वैक्सीन पहुंच में प्रत्यक्ष भागीदारी सुनिश्चित करना है, जिसके बाद अफ्रीकी स्वास्थ्य प्रणालियों के व्यापक सुदृढ़ीकरण की योजना होगी। पहले से ही भारत-अफ्रीका स्वास्थ्य सहयोग बहुआयामी व व्यापक है, और इसमें राष्ट्रीय, राज्य और उपनगरीय खिलाड़ी शामिल हैं, जो अफ्रीकी संस्थागत और व्यक्तिगत क्षमताओं को बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं। इसमें कम लागत वाली जेनरिक दवाओं का निर्यात करना, स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे का निर्माण, सहायता प्रदान करना, तकनीकी सहायता और चिकित्सा पर्यटकों की मेजबानी आदि शामिल है। दुनिया की फार्मेसी के रूप में मशहूर भारत पहले ही हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन एवं अन्य दवाएं 25 से ज्यादा अफ्रीकी देशों को भेज चुका है, यह इस क्षेत्र में कम लागत वाली कोविड-19 टीकों की आपूर्ति में एक महत्वपूर्ण भागीदार बन सकता है। दवाओं की आपूर्ति करने के अलावा भारतीय दवा कंपनियां अफ्रीकी दवा निर्माण क्षमता बढ़ाने में भी भूमिका निभा सकती हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश देश बड़े पैमाने पर भारतीय दवा निर्यात पर निर्भर हैं, केन्या और इथियोपिया जैसे देशों में कई भारतीय कंपनियों को निवेश के माहौल ने आकर्षित किया है और उन्होंने स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम स्थापित किए हैं। पहले से ही इस क्षेत्र में सक्रिय उद्योगों के पास यह अवसर है, जिन्हें पता है कि जटिल पेटेंट कानूनों से कैसे निपटना है, जिनसे उन संगठनों के साथ साझेदारी स्थापित करने में मदद मिलती है।
वैकल्पिक रूप से भारतीय उद्योगों को इस क्षेत्र में विदेशी निवेशकों को दिए जाने वाले प्रोत्साहन और स्थानीय व्यवसायों के साथ साझेदारी के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन दिए जाने से भी लाभ होगा। दवा निर्माण से अलग कच्चे माल के प्रसंस्करण, पैकेजिंग और आपूर्ति परिवहन जैसे संबद्ध उद्योगों में भी जबर्दस्त अवसर हैं, जिनका भारतीय उद्यमी लाभ उठा सकते हैं। इसके अलावा भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले निजी खिलाड़ियों की पहले ही अफ्रीका में महत्वपूर्ण उपस्थिति है। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में पारिस्थितिकी निर्माण, निवेश बढ़ाने और क्रॉस-कंट्री पार्टनरशिप के उद्देश्य से हेल्थ फेडरेशन ऑफ इंडिया और अफ्रीका हेल्थ फेडरेशन के बीच हाल ही में सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जो स्वास्थ्य में एक मजबूत साझेदारी की व्यापार क्षमता को मान्यता देता है।
इस क्षेत्र में भारत-अफ्रीका सहयोग को व्यापक बनाने के लिए भारत सरकार सूत्रधार की भूमिका निभा सकती है और वह चिकित्सा पेशेवरों के साथ काम करने वालों का समूह बना सकती है, जो टीके की आपूर्ति से परे महामारी के अनुभव और सीख को साझा करने के लिए अफ्रीकी देशों के समकक्षों के साथ वीडियो या टेली कांफ्रेंस की मेजबानी कर सकती है। ई-आरोग्य भारती परियोजना इस दिशा में एक कदम है। स्वास्थ्य सहयोग छोटे, मध्यम और दीर्घकालिक रूप से महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि दोनों क्षेत्र महामारी के बाद के प्रभाव से उबर रहे हैं। भारतीय खिलाड़ी विश्व स्वास्थ्य संगठन या संयुक्त राष्ट्र जैसे हितधारकों द्वारा अफ्रीका के आरोग्य लाभ के लिए किए जा रहे प्रयासों को आगे बढ़ाने की पहल कर सकते हैं। हालांकि यह तर्क दिया जा सकता है कि कोविड-19 संकट का भारत पर गंभीर प्रभाव पड़ा है और इससे निपटने की घरेलू जिम्मेदारी भी देश के पास है। ऐसे में अफ्रीका के साथ साझेदारी करना भारत-अफ्रीका एकजुटता की समृद्ध ऐतिहासिकता के लिए बड़ी बात होगी।
(-लेखिका शोधकर्ता हैं और नई दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज में एशिया-अफ्रीका संबंधों की विशेषज्ञ हैं।)
सौजन्य - अमर उजाला।
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