सोमवार को प्रस्तुत आम बजट की सबसे बड़ी घोषणाओं में से एक थी केंद्र सरकार के उपक्रमों (सीपीएसई) का रणनीतिक विनिवेश करने की घोषणा। अन्य बातों के अलावा इससे समग्र आर्थिक सुधार के एजेंडे को बल मिलेगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गत वर्ष घोषणा की थी कि सरकार ऐसी एक नीति लाएगी। उसे हाल ही में कैबिनेट की मंजूरी मिली। नई नीति सीपीएसई के लिए एक स्पष्ट खाका पेश करेगी। लक्ष्य होगा उनकी मौजूदगी को न्यूनतम करना और निजी क्षेत्र को अधिक जगह देना। सरकार ने चार व्यापक रणनीतिक क्षेत्रों की पहचान कर ली है। इनमें नाभिकीय ऊर्जा, अंतरिक्ष और रक्षा, बिजली, पेट्रोलियम, कोयला और खनिज, परिवहन और दूरसंचार तथा वित्तीय सेवाएं शामिल हैं। इन क्षेत्रों में सीपीएसई की उपस्थिति न्यूनतम होगी। गैर सामरिक क्षेत्रों में सीपीएसई का निजीकरण होगा या उन्हें बंद किया जाएगा।
सरकार की इस बात के लिए सराहना करनी होगी कि उसने असाधारण रूप से यह साहसी नीतिगत कदम उठाया। हकीकत तो यह है कि वित्त मंत्री ने अगले वित्त वर्ष में दो सरकारी बैंकों और एक बीमा कंपनी के निजीकरण का प्रस्ताव भी रखा है। यकीनन इससे नीतिगत अवरोध टूटेंगे और एक नई शुरुआत होगी। इस प्रक्रिया को आगे ले जाने के लिए सरकार ने नीति आयोग से कहा है कि वह रणनीतिक विनिवेश वाली कंपनियों की सूची तैयार करे। इस नीति के कई लाभ होंगे। यह मानना अहम है कि विभिन्न क्षेत्रों में सरकारी कंपनियों की मौजूदगी प्राय: विसंगति पैदा करती है और निजी क्षेत्र की कंपनियों को बाधित करती है जबकि उन्हें अधिक कठिन वित्तीय हालात का सामना करना होता है। इतना ही नहीं बड़ी तादाद में सरकारी कंपनियां घाटे में हैं और वे सरकारी वित्त पर बोझ के समान हैं। उदाहरण के लिए भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की एक रिपोर्ट दर्शाती है कि मार्च 2018 में समाप्त वित्त वर्ष में 184 सरकारी कंपनियों को कुल मिलाकर 1.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक का घाटा हुआ और 77 कंपनियों का विशुद्ध मूल्य पूरी तरह नष्ट हो गया। समस्या यह है कि मुनाफे में चल रही सीपीएसई का प्रदर्शन भी अधिकांश मानकों पर निजी क्षेत्र की समकक्ष कंपनियों की तुलना में काफी खराब है। ऐसे में बड़ी तादाद में सीपीएसई की वित्तीय स्थिति को देखते हुए बेहतर यही होगा कि सरकार या तो उनका निजीकरण कर दे या उन्हें बंद कर दे। चूंकि सरकार की वित्तीय स्थिति भी दबाव में है इसलिए विनिवेश प्राप्तियों का इस्तेमाल बुनियादी ढांचा जैसे क्षेत्रों में वित्त पोषण के लिए किया जा सकता है। ध्यान देने वाली बात है कि अधिकांश सीपीएसई का मुनाफा पेट्रोलियम और कोयला जैसे क्षेत्र से आता है जहां प्रतिस्पर्धा अपेक्षाकृत सीमित है। सरकारी उपक्रमों के लिए निजी क्षेत्र से मुकाबला करना मुश्किल होता है। ऐसे में निजीकरण और प्रबंधन में बदलाव से उनकी क्षमता और उत्पादन सुधर सकते हैं। इसके अतिरिक्त बड़े पैमाने पर कमजोर वाणिज्यिक उपक्रमों के संचालन में ऊर्जा और वित्तीय संसाधन लगाने के बजाय सरकार नीतिगत मसलों पर ध्यान केंद्रित करने में कामयाब रहेगी। यह सबके लिए बेहतर होगा।
हालांकि रणनीतिक विनिवेश के लाभ स्पष्ट हैं लेकिन समुचित क्रियान्वयन भी उतना ही अहम होगा क्योंकि अतीत में हमारा प्रदर्शन बहुत उत्साहित करने वाला नहीं रहा है। इसके अलावा व्यापक पैमाने पर निजीकरण का विचार, खासतौर पर सरकारी बैंकों के निजीकरण का चौतरफा विरोध भी होगा। सरकार को उनसे निपटने की राजनीतिक तैयारी भी रखनी होगी। सरकार को इस दौरान अधिकतम पारदर्शिता भी बरतनी चाहिए। अतीत में विनिवेश के निर्णय विवादों और जांच का विषय बनते रहे हैं। कोशिश करनी होगी कि इस बार ऐसा नहीं हो क्योंकि इससे निजीकरण की प्रक्रिया और व्यापक तौर पर इससे जुड़ी नीति को नुकसान पहुंच सकता है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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