सुकुमार मुखोपाध्याय
आम बजट की सबसे अच्छी बात यह है कि इसने उन आशंकाओं को समाप्त कर दिया है जो आयातकों और विश्लेषकों के मन में थीं। उन्हें भय था कि बजट में सीमाशुल्क बढ़ाया जाएगा जिससे संरक्षणवादी रुख एक बार फिर मजबूत होगा। सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया है। हालांकि शुल्क दरों में बदलाव किए गए हैं और उद्योगों की प्रकृति के अनुसार उनमें कमी और बढ़ोतरी दोनों देखने को मिली है। लौह और इस्पात उद्योग की बात करें तो कई चीजों के लिए शुल्क दरें कम की गई हैं ताकि लोहे और इस्पात से बनने वाले उत्पादों के दाम में हुए इजाफे का असर समाप्त किया जा सके। कैप्रोलैक्टम (प्लास्टिक बनाने में इस्तेमाल होने वाला), नायलॉन चिप, नायलॉन फाइबर और धागे पर शुल्क 5 प्रतिशत कम किया गया है। नेफ्था पर लगने वाला शुल्क 2.5 प्रतिशत कम किया गया है। किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए बजट में कपास पर लगने वाले सीमा शुल्क को शून्य से बढ़ाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया है और कच्चे रेशम तथा रेशम के धागे पर शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया है। बजट में एथाइल एल्कोहल के अंतिम उपयोग पर आधारित रियायत को समाप्त कर दिया गया है ताकि उसे ऐसे अन्य उत्पादों पर लगने वाले शुल्क के साथ तार्किक बनाया जा सके। कृषि क्षेत्र का बुनियादी ढांचा सुधारने के लिए कई उत्पादों पर अधोसंरचना एवं विकास उपकर लगाने का प्रस्ताव रखा गया है। सीमा शुल्क संबंधी जांच पूरी करने के लिए एक तय समय-सीमा घोषित करने की बात कही गई है। बजट में एक अच्छा प्रस्ताव यह है कि सभी सीमा शुल्क रियायतें अगली 31 मार्च को दो वर्ष के बाद स्वत: समाप्त हो जाएंगी।
एक नकारात्मक पहलू यह है कि बजट के अनुसार एक ओर जहां 80 रियायतें समाप्त की गई हैं, वहीं इसमें इस वर्ष 400 पुरानी रियायतों की समीक्षा की बात भी शामिल है। इससे मुझे सर स्टैफर्ड क्रिप्स के प्रस्तावों के बारे में गांधीजी का कथन याद आता है। उन्होंने उन प्रस्तावों के बारे में कहा था कि वे ऐसे कैंसिल चेक के समान हैं जो जिन्हें भविष्य में ही भुनाया जा सकता है। सच तो यह है कि बजट टीम को बजट के पहले ही समीक्षा करनी चाहिए थी और नतीजों की घोषणा बजट में करनी थी। रियायतों की समीक्षा बजट टीम का काम है और वह यह नहीं कह सकती कि इसे अगले साल किया जाएगा। किसी भी रियायत की समीक्षा किसी भी समय हो सकती है और इसका उल्लेख बजट में करना जरूर नहीं। अब यह पता नहीं चल पाएगा कि इन 400 में से कितनी रियायतें समाप्त की गईं। ऐसे में इसके जिक्र का कोई अर्थ नहीं।
आम जनता से सुझाव लेने की जो बात बजट में कही गई वह भी बहुत भ्रामक है। हर वर्ष सभी अंशधारक सरकार को पत्र लिखकर प्रत्यक्ष तौर पर या किसी उद्योग या व्यापार संगठन (मसलन सीआईआई या फिक्की) आदि के माध्यम से अथवा वित्त मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात कर अपनी राय देते हैं। यह भी जनता की राय लेने जैसा ही है। बजट के संदर्भ में आम जनता का अर्थ राह चलता व्यक्ति नहीं होता। केवल अंशधारक ही लिखते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि क्या लिखना है। उदाहरण के लिए जब हम ग्रेन ओरियेंटेड स्टील शीट पर शुल्क कम करने की बात लिखते हैं तो हम आम जनता से नहीं केवल उनसे चर्चा करते हैं जो देश में इनका इस्तेमाल करते हैं। जब हम सॉफ्टवेयर पर शुल्क कम करते हैं तो हम इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के निर्माताओं और आयातकों तथा इलेक्ट्रॉनिक विभाग से बात करते हैं। सीमा शुल्क दरें आम आदमी का विषय नहीं हैं। ऐसे में आम आदमी का जिक्र केवल लोकलुभावन बनने का प्रयास है। ऐसा विचार पेश करने की कोशिश की गई कि यह बजट आम जनता के सुझावों से निर्मित है। यह गलत है क्योंकि हर वर्ष बजट ऐसे ही बनता है। अंशधारकों से चर्चा में कुछ भी नया नहीं।
बजट में ऐसी बातें शामिल की गईं जिनका उल्लेख बजट में नहीं होता। बजट में उन बातों के प्रस्ताव रखे जाते हैं जो की जानी हैं। यह कोई ऐसा दस्तावेज नहीं है जिसमें यह बताया जाए कि पिछले साल कौन से अच्छे कदम उठाए गए। बताया गया कि वस्तुओं को बिना संपर्क, कागजी कार्रवाई और व्यक्तिगत मौजूदगी के स्वीकृति देने के लिए तुरंत प्रक्रिया शुरू की गई। यह भी कहा गया कि विदेश व्यापार समझौतों के क्षेत्र में की गई पहल सफल रही हैं। खासकर किसी वस्तु के निर्माण के मूल देश के बारे मेंं। इन बातों का उल्लेख जरूरी नहीं था क्योंकि ये बजट प्रस्ताव नहीं हैं। सच तो यह है कि मूल देश का मसला बहुत कटुता भरा है। जानकारी के मुताबिक मौजूदा मसलों को बॉन्ड और बैंक गारंटी के माध्यम से हल किया गया है और बजट इसका श्रेय नहीं ले सकता।
इस बजट में किसी सुधार की शुरुआत नहीं की गई है। सीमा शुल्क ढांचा पूरी तरह अतार्किक है क्योंकि इसमें विभिन्न शर्तों, प्रमाणन आवश्यकताओं आदि के साथ विविध दरें हैं। फिलहाल सीमा शुल्क के क्षेत्र में 150, 100, 85, 70, 65, 50, 40, 35, 30, 25, 15, 10, 7.5, 5, 3, 2.5, शून्य और कुछ विशिष्ट दरों समेत 19 दरें हैं। सैकड़ों रियायतें, शर्तें और सूचियां हैं जो सीमा शुल्क के वर्गीकरण को काफी जटिल बनाती हैं। सीमा शुल्क के क्षेत्र में रियायतें हटाने की दिशा में कुछ नहीं किया गया जबकि इससे अतिरिक्त राजस्व आ सकता था। इतना ही नहीं वर्गीकरण भी आसान होता। दरों को 150, 100, 50, 25, 15, 10 और 5 के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता था। रियायतों को समाप्त करना एक बड़ा कदम होता जो नहीं उठाया गया।
जीएसटी कानून में मुनाफा-विरोधी प्रावधान एक बड़ी कमी है। करीब 80 पक्ष इस मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष ले जा चुके हैं। इसमें शामिल राजस्व बहुत अधिक नहीं है। जीएसटी के कामकाज को सहज बनाने के लिए वित्त मंत्री बता सकती थीं कि इस प्रावधान को कब समाप्त किया जाएगा।
बजट अच्छा है लेकिन वह इतना भी अच्छा नहीं है कि वित्त मंत्री के 'समाजवादी बोझ' को उतार फेंकने के वादे को निभाता हो। वह ऐसा कब करेंगी?
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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