के. एस. तोमर
भारत की 'पड़ोसी पहले' की नीति को वर्ष 2021 में तेजी से लागू करने की जरूरत है, क्योंकि इस मोर्चे पर विफलता चीन को इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करेगी। जबकि इस मामले में हमारा अभिनव दृष्टिकोण सकारात्मक परिणाम दे सकता है, जिससे दक्षिण एशियाई देशों के बीच रणनीतिक विश्वास और भरोसा प्राप्त होगा। पिछले वर्ष भारत कोविड-19 और चीन की आक्रामकता से जूझ रहा था, जिसका खास तौर से अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा, जबकि नए वर्ष में भारत ने अमेरिका, यूरोपीय संघ, पश्चिम एशियाई देशों और अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने और नए संबंध बनाने की चुनौतियों के साथ प्रवेश किया है।
नया साल भारत को आकांक्षी खिलाड़ी के बजाय वैश्विक खिलाड़ी के रूप में उभरने का अवसर प्रदान करता है, पर यह चीन द्वारा गुमराह और लुभाए गए पड़ोसियों का भरोसा जीतने के लिए नीतिगत बदलावों पर निर्भर करेगा। विश्लेषकों का मानना है कि नए रणनीतिक दृष्टिकोण से अमेरिका, यूरोपीय संघ, मुस्लिम देशों आदि में नए शासन से निपटने के लिए अधिक से अधिक सौदेबाजी की शक्ति प्राप्त करने में मदद मिलेगी। भारत का उदय आक्रामक और शत्रुतापूर्ण चीन की छाया में हो रहा है। विदेशी मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की मुखरता को भारत के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि यह भारत के निकट पड़ोसी देशों में हावी होना चाहता है।
पड़ोसी देशों पर ध्यान केंद्रित कर मोदी सरकार को दिखाना होगा कि भारत में क्षेत्रीय शांति और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने की क्षमता है। भारत को यूरोप को लुभाने तथा ब्रिटेन के साथ बातचीत से पहले ब्रिटेन व यूरोपीय संघ के सौदे पर नजर रखने की आवश्यकता है। आगामी मई में भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन होने की संभावना है। फ्रांस और जर्मनी अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति के साथ सामने आए हैं, लेकिन भारत के वार्ताकारों ने अपने आर्थिक हितों को ध्यान में रखते हुए यूरोपीय संघ-चीन के व्यापार समझौते को खारिज कर दिया। भारत को अपने पड़ोस में चीन की बढ़ती आर्थिक गतिविधियों पर नजर रखने की जरूरत होगी, क्योंकि चीन ने पाकिस्तान की मदद मांगने की नीति का दोहन किया है, जिससे भारत के खिलाफ इस दुष्ट राष्ट्र का इस्तेमाल करने की आशंका बढ़ जाती है।
भारत को नए साल में अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले जो बाइडन से बड़ी उम्मीदें हैं, जिन्होंने दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को आगे बढ़ाने के अलावा चीन पर नियंत्रण रखने के लिए भारत के मजबूत संबंधों पर जोर दिया है, जो इस बात पर निर्भर करेगा कि बड़ी योजनाओं में अमेरिका चीन को किस तरह देखता है। भारत, अमेरिका-चीन व्यापार समझौते के निहितार्थों को बारीकी से देखेगा और उन प्रमुख परीक्षणों में क्वाड का भविष्य तथा नए अमेरिकी प्रशासन की हिंद प्रशांत रणनीति होगी। नई दिल्ली को अमेरिका के साथ अपने गहन रणनीतिक और रक्षा संबंधों को बढ़ाना चाहिए और व्यापार और वीजा मुद्दों को हल करने का विकल्प चुनना चाहिए।
भारत को जम्मू-कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंकवाद का सामना करना पड़ रहा है, जिसे चीन प्रोत्साहित करता है। भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक कर सख्ती से इसका जवाब दिया था, लेकिन असंख्य संघर्ष विराम उल्लंखन जारी हैं। बातचीत से इसका हल निकाला जा सकता है, लेकिन यह एकतरफा नहीं हो सकता। पाकिस्तान को कर्ज देने के मामले में चीन ने जापान को पीछे छोड़ दिया है। पाकिस्तान पर चीन का 19 अरब डॉलर बकाया है। चीन के कर्ज का बढ़ता बोझ पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा जुआ है, इसलिए संबंधों में सुधार की संभावना दूर की कौड़ी है।
इधर नेपाल भारत के लिए नया सिरदर्द बना है। इस साल प्रधानमंत्री ओली की विदाई से संबंधों के आयाम खुल सकते हैं। हालांकि मोदी सरकार ने पहले ही पहल करते हुए ओली सरकार से बातचीत करने के लिए विदेश सचिव और सेना प्रमुख को भेजा था। भारत को नेपाल में चुनाव के बाद नई सरकार से बातचीत को पुनर्जीवित करना होगा, जो उम्मीद है कि चीन की कठपुतली नहीं होगी। भारत को अन्य पड़ोसी देशों के साथ भी अपने संबंध सुधारने चाहिए। सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर बांग्लादेश ने बेरुखी दिखाई थी, जो भारत का आंतरिक मामला था। नतीजतन भारत ने सीएए के नियमों को अधिसूचित नहीं किया। ऐसा लगता है कि भारत मालदीव में अमेरिका की भागीदारी से शांति स्थापित कर रहा है और खुद को जापान के साथ जोड़ रहा है, जिसके श्रीलंका और मालदीव में काफी कुछ दांव पर है, इसलिए इन प्रयासों को जारी रखना चाहिए।
भारत की 'आत्मनिर्भरता' की सार्वजनिक अभिव्यक्ति और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) समझौते पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करने को व्यापक रूप से 'अलगाववादी' और 'स्वार्थी ' के रूप में देखा गया। इसलिए नए साल में इस पर सख्त नजर रखने की जरूरत है, ताकि चीन के वर्चस्व पर अंकुश लगाने के अलावा अर्थव्यवस्था की गिरावट को रोकने के लिए बड़े फैसले लिए जा सकें। चूंकि सीमा पार आतंकवाद भारत की प्रमुख चिंताओं में से एक है, इसलिए भारत पाकिस्तान को आगे भी अलग-थलग रखने के लिए काम करेगा, जबकि पाकिस्तान भारत को वैश्विक नेता बनने की आकांक्षा से विचलित करेगा।
जहां तक ईरान के साथ भावी संबंधों की बात है, तो बाइडन प्रशासन ओबामा शासन के दौरान मौजूद अमेरिका-ईरान संबंधों के मूल रवैये का पालन कर सकता है। अब भारत को अमेरिका और ईरान के बीच संबंधों को आसान बनाने के लिए सख्त रुख अपनाने और योगदान देने की जरूरत है, जिसका हमारे लिए काफी रणनीतिक महत्व होगा। ईरान हमारा विश्वसनीय दोस्त है, जो अतीत में पाकिस्तान की शरारती चालों के खिलाफ खड़ा रहा है। हालांकि सभी देशों को नए साल में अपनी बदहाल अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने को शीर्ष प्राथमिकता में रखना होगा, लेकिन भारत को इसके अलावा अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को भी सामान्य बनाना होगा।
सौजन्य- अमर उजाला।
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