विराग गुप्ता
ट्रंप और चीन के कारनामों से यह साफ है कि जंग और राजनीति में सब कुछ जायज होता है। रुखसत होने से कुछ ही दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कोरोना के वैश्विक विस्तार के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराते हुए, संयुक्त राष्ट्र यानी यूएन से सख्त कार्रवाई की मांग की थी। ट्रंप के दावों की पुष्टि होना मुश्किल है, लेकिन यह बात निश्चित है कि कोरोना से उपजी
त्रासदी में चीनी गिद्ध सबसे बड़ा सुपर पावर बनने के लिए बेताब है। महामारी से भारत समेत कई देशों की अर्थव्यवस्था तबाह हो गई, जिसका असंगठित क्षेत्र और गरीबों को सबसे ज्यादा खामियाजा उठाना पड़ा। कोरोना काल में रोजगार और व्यापार खोने वाले आपदाग्रस्त लोगों की मदद के नाम पर, हजारों डिजिटल एप ने लाखों लोगों का सुख-चैन छीन लिया है। तेलंगाना पुलिस की शुरुआती जांच के अनुसार, लोन एप के गोरखधंधे में चीनियों का भी गिरोह काम कर रहा है।
लॉकडाउन के अंधेरे में पनपे इस कारोबार को तीन हिस्सों में समझा जा सकता है। पहला डिजिटल लोन एप्स। देश में 100 करोड़ से ज्यादा मोबाइल हैं, जिनमें लोग फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे एप्स चलाते हैं। गूगल और एपल के प्लेटफॉर्म पर इस समय लगभग 47 लाख एप्स से हर तरह के कारोबार हो रहे हैं। एप्स और वेबसाइट आदि के लिए वर्ष 2000 में आईटी कानून बनने के बावजूद भारत में इनके रजिस्ट्रेशन, नियमन और टैक्सेशन के लिए अभी तक कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं बनी। देश में गरीबों की मदद के लिए हजारों योजनाएं चल रही हैं, लेकिन जरूरतमंदों को समय पर लोन देने के लिए शायद ही कोई बैंक आगे आता है, इसलिए बगैर कागज-पत्तर के झटपट लोन देने वाले इन एप्स का कारोबार खूब चल निकला। लोन एप्स ने ग्रामीण क्षेत्रों में कारोबार और वसूली के लिए पुणे, बंगलूरू, नोएडा, हैदराबाद और चेन्नई जैसे आईटी हब्स में अपने कॉल सेंटर खोल रखे हैं।
पूरे देश में चल रहे इस कारोबार का खुलासा तेलंगाना पुलिस ने किया। सिर्फ एक राज्य की पुलिस की जांच में लगभग 1.4 करोड़ लेन-देनों से 21 हजार करोड़ के कारोबार का खुलासा हो चुका है। लोन घोटाले की भारी रकम चीन और दूसरे देशों में ट्रांसफर होने के सबूत आने पर केंद्रीय एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी आपराधिक मामला दर्ज कर लिया। इस घोटाले का दूसरा पक्ष वे पीड़ित और गरीब लोग हैं, जो इन लोन एप्स के शिकंजे में फंस कर बर्बाद हो गए। भारत में लगभग 80 करोड़ लोगों को कोरोना काल में सरकारी भोजन और अनाज की मदद मिली। उनमें से करोड़ों जरूरतमंदों ने बीमारी, पढ़ाई, शादी आदि के लिए नए जमाने के इन डिजिटल साहूकारों से भारी ब्याज दर पर छोटे-छोटे लोन ले लिए। बगैर वैध समझौते के हुए लोन के एवज में लाचार लोगों ने अपने मोबाइल डाटा और आधार आदि का विवरण इन सूदखोर कंपनियों के हवाले गिरवी रख दिया।
लोन के मूलधन के भुगतान के बावजूद भारी ब्याज को वापस करने में जब लोग फेल हो गए, तो इन कंपनियों ने ब्लैकमैलिंग के हथकंडे से कर्जदारों को पीड़ित करना शुरू कर दिया। लोन की रकम न चुका पाने के कारण ये एप लोन लेने वाले शख्स को धमकाने के साथ उसके रिश्तेदारों और जानकारों को फोन करके बदनाम करने लगे। फोटो के साथ छेड़खानी करके व्हाट्सएप में दुष्प्रचार, धमकी वाले कॉल और फर्जी कानूनी नोटिस भी कर्जदारों और उनके परिचितों को भेजी गईं। इन कंपनियों से लोन लेने वाले लोग कमजोर और गरीब वर्गों से आते हैं, जो इन डिजिटल प्लेटफॉर्म के खिलाफ पुलिस में शिकायत करने से घबराते हैं। इसके अलावा छोटे कस्बों और शहरों में पुलिस का साइबर सेल भी नहीं होता। कुछ हजार लोन लेने वाले पीड़ित लोग राहत के लिए थकाऊ और महंगी अदालती व्यवस्था के पास भी नहीं जा पाए और कई ने प्रताड़ना से ऊब कर अपनी जान दे दी।
मनी लेंडिंग कानून के तहत राज्यों में लोन का कारोबार करने के लिए अलग-अलग नियम हैं, लेकिन रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार, बैंक और एनबीएफसी कंपनियां ही लोन का कारोबार कर सकती हैं। लोन एप्स का मर्ज जब पूरे देश में बढ़ गया, तो फिनटेक कंपनियों और ऑनलाइन लोन के कारोबार को नियमबद्ध करने के लिए रिजर्व बैंक ने एक समिति बना दी। लेकिन रिजर्व बैंक ने पिछले साल 24 जून, 2020 को जो आदेश जारी किया था, उस पर ही यदि ढंग से अमल किया जाए, तो लोन एप्स के डिजिटल गिरोह की कमर तोड़ी जा सकती है। रिजर्व बैंक के आदेश से साफ है कि डाटा के दुरुपयोग और कर्ज वसूली के लिए लोन एप्स द्वारा की जा रही डिजिटल पहलवानी गैर-कानूनी है। इस आदेश से यह भी स्पष्ट है कि बैंकों और एनबीएफसी कंपनियों की वेबसाइट में सभी डिजिटल लोन एप्स का पूरा विवरण हो, जिससे किसी भी गलत काम के लिए उन्हें भी जवाबदेह बनाया जा सके। रिजर्व बैंक के अनुसार, कर्ज देते समय ग्राहकों को लिखित स्वीकृति पत्र देना जरूरी है, जिसमें कानूनी सीमा के भीतर ब्याज दरों के विवरण के साथ बैंक और एनबीएफसी कंपनी का पूरा खुलासा जरूरी है।
भारत में एप्स के माध्यम से लोन देने वाले ऑपरेटर्स अधिकांशतः गैरकानूनी तरीके से कारोबार कर रहे हैं और लोन वसूली के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हथकंडे तो पूरी तरह से आपराधिक हैं। इस मसले पर देशव्यापी गुस्सा बढ़ने के बाद गूगल ने अपने प्लेटफार्म से कुछ लोन एप्स को हटा दिया। लेकिन डिजिटल एप्स तो रक्त बीज की तरह व्यापक हैं, जो लोगों को ठगने के लिए मारीच की तरह रूप भी बदल लेते हैं। गूगल और एपल के प्ले स्टोर से बिक रहे इन एप्स की डेवलपर पॉलिसी में बैंक और एनबीएफसी कंपनियों का पूरा खुलासा नहीं होने से पूरी गफलत हो रही है।
गूगल और एपल प्ले स्टोर के माध्यम से भारत में कारोबार कर रहे हर लोन एप में रिजर्व बैंक की अनुमति प्राप्त बैंक और कंपनियों का पूरा विवरण आ जाए, तो ठगी करने वाले एप्स बेनकाब हो जाएंगे। इसलिए रिजर्व बैंक के नियमों को लागू करने के लिए गूगल और एपल जैसी बड़ी कंपनियों पर सरकार को दबाव बनाना होगा, तभी लोन एप्स के मगरमच्छों से आम जनता को मुक्ति मिलेगी।
सौजन्य - अमर उजाला।
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